सोमवार 1 दिसंबर 2025 - 20:16
कुरआन से वास्तविक व्यावहारिक लगाव ही समाज के सुधार का एकमात्र रास्ता है।आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी

हौज़ा / क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,क़ुम अलमुकद्दस में इमामज़ादेह सैयद अली अ.स. के हरम में आयोजित 48वीं मआरिफ़ ए कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया प्रतियोगिताओं के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, फ़िक़्ही आयम्मा ए अतहार अ.स. केंद्र के प्रमुख आयतुल्लाह जवाद फाज़िल लंकरानी ने कहा कि समाज के सुधार, शांति, नैतिकता और सामाजिक प्रगति का एकमात्र रास्ता कुरआन से वास्तविक लगाव है।

उन्होंने कहा कि कुरआन इंसान का सबसे मज़बूत मार्गदर्शक और सबसे अच्छा नसीहत करने वाला है, और जो व्यक्ति जीवन में कठिनाई या बाधा का सामना करे, उसे कुरआन से लगाव पैदा करना चाहिए।

आयतुल्लाह फाज़िल लंकरानी ने कहा कि इस्लामी क्रांति की बड़ी बरकतों में से एक यह है कि कुरआन, नहजुल बलाग़ा और सहीफा-ए-सज्जादिया समाज के व्यावहारिक जीवन में पहले से कहीं अधिक प्रवेश कर गया हैं। उन्होंने कहा कि कुरआन की तिलावत, तदब्बुर और मआरिफ़ की ओर रुझान में पिछले दशकों के दौरान उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि कुरआन सिर्फ तिलावत की किताब नहीं है। अगर समाज, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक केंद्र या सरकारी व्यवस्था कुरआन से दूर रहेंगे तो नुकसान में रहेंगे।

उन्होंने कुरआन की आयत
"الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ"
जिन्हें हमने किताब दी है, वे उसके हक़ तिलावत के साथ पढ़ते हैं...का उच्चारण करते हुए कहा कि कुरआन का हक़-ए-तिलावत वही है जो रिवायतों में बयान हुआ है, यानी कुरआन के सभी आदेशों का व्यावहारिक पालन।

उन्होंने कहा कि ईमान की असली रूह कुरआन के आदेशों को जीवन में लागू करने में है, और इससे विमुखता, कुरआन से दूरी और नुकसान का कारण बनती है।

आयतुल्लाह फाजिल लंकरानी ने कहा,कुरआन आस्था, नैतिकता, राजनीति, सामाजिकता, शिक्षा और इंसान की सभी व्यक्तिगत व सामाजिक ज़रूरतों का सबसे व्यापक स्रोत है। कोई भी व्यक्ति कुरआन के बिना वास्तविक मार्गदर्शन तक नहीं पहुँच सकता।

उन्होंने कहा कि कुछ नए नामों से सामने आने वाली झूठी इरफ़ान की शिक्षाएँ लोगों को कुरआन और सुन्नत से दूर करती हैं, इंसान को रास्ते से भटकाती हैं।

उन्होंने कहा कि कुरआन से लगाव, इंसान के दिल में नूर-ए-हिदायत प्रवेश कराता है और बंदे को सिफ़ात-ए-इलाही का आईना बना देता है।

उनका कहना था कि सभी कुरआनी संस्थानों के प्रयासों के बावजूद, समाज के प्रतिष्ठित लोग अभी भी कुरआन की मूल हक़ीकत से पूरी तरह वाकिफ़ नहीं हैं।

उन्होंने कहा,तमस्सुक-ए-कुरआन का मतलब वाजिबात मुहर्रमात नैतिकता, राजनीति और सामाजिकता में व्यावहारिक पालन है। अगर कोई संस्था, सरकारी विभाग या विश्वविद्यालय कुरआन के आदेशों से ग़ाफ़िल है तो यही मूल समस्या है।

उन्होंने आयत "وَالَّذِينَ يُمَسِّكُونَ بِالْكِتَابِ" (और जो किताब को मज़बूती से थामने वाले हैं...) की रोशनी में कहा कि कुरआन स्पष्ट रूप से बताता है कि समाज का सुधार सिर्फ़ कुरआन के साथ व्यावहारिक लगाव से ही संभव है, न कि सिर्फ़ तिलावत से।

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